पृष्ठ

यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

कला

"यह शायद मस्तिष्क का एक ही उचित पक्ष होता है जो एक पुरुष को आभूषणों और कला के अपेक्षाकृत अधिक स्थिर सिद्धांतों से सम्बंधित सत्य या क्या सही है - इसका एक विचार बनाने में सक्षम बनाता है. इसमें पूर्णता का एक ही केंद्र होता है,हालाँकि यह अपेक्षाकृत छोटे वृत्त का केंद्र होता है. वेशभूषा के फैशन द्वारा इसका खुलासा करने के लिए -इसमें अच्छी या बुरी रुचि होती है. एक वेशभूषा के तत्व बड़े से लघु, छोटे से लंबे में निरंतर बदलते रहते हैं; लेकिन उसका आकार आमतौर पर एक सा रहता है,जिसे तुलनात्मक रूप से बहुत हल्के आधार पर तैयार किया जाता है. लेकिन फैशन इसी पर आधारित होता है. एक व्यक्ति जो बहुत सफलतापूर्वक सुरुचिपूर्ण नई वेशभूषा की ईजाद करता है, वह संभवतः उसी कुशलता को इससे बड़े उद्देश्य  में लगाये तो उसी उचित रुचि के आधार पर कला में भी उच्च स्तरीय दक्षता हासिल कर लेगा."


(सर जोशुआ रेनॉल्ड्स के डिस्कोर्स    -स्त्रियों की पराधीनता से साभार.)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें