जब कभी तुम अपने सफ़ेद पंखों में
मुझे
लपेट लेती हो
तुम्हारे सादेपन की रंगत
मेरा कुछ ले उड़ती है.
घने गांछों के सिर पर
जहाँ सांझ उगती है
और डूब जाता है
अनमना-सा सूरज
कुछ भी तो नहीं बदलता
फिर जाने क्यों टहनियां झुक जाती हैं
उदास होकर
और
जरा सा रूककर तुम मुझे छोड़ देती हो
वहीँ कहीं अनजाने में ही