सोमवार, 13 सितंबर 2010
कश्मीर में शांति कब लौटेगी ?
सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून के खिलाफ देश में अलग-अलग जगहों पर विभिन्न संगठनों ने विरोध दर्ज कराया है.1958 का यह कानून भारत जैसे जनतांत्रिक देश पर एक धब्बा है जिसे सम्पूर्ण रूप से हटा देना चाहिए या कम से कम कश्मीर के अपेक्षाकृत शांत जिलों से तो तत्काल प्रभाव से इस कानून को उठा लेना चाहिए.कश्मीर भारत का एक अंग है और वहां के नागरिकों को भी शेष देशवासियों की तरह अमन चैन से जीने का हक है परन्तु कश्मीर में जिस स्तर की हिंसा जारी है और उससे निर्दोष कश्मीरियों को जो नुक्सान उठाने पड़े हैं आखिर उनकी भरपायी कौन करेगा? ईद जैसे शांतिमय और सौहार्दपूर्ण त्योहार के मौके पर सार्वजनिक संपत्ति पर धावा बोला गया.पुलिस चौकी और मकानों में आग लगायी गयी,यहां तक कि उग्र भीड़ ने सरकारी माध्यमिक स्कूल में आग लगा दी.आखिर ये लोग किसकी ओर से हैं, ये किस मानवाधिकार की बात कर रहे हैं.हिंसा के द्वारा केवल और केवल हिंसा ही फैलती है. उससे शांति की स्थापना की कल्पना करना आकाश में महल बनाने जैसा है. ११ वर्षीय इरशाद अहमद पररय की मौत की जिम्मेदारी जितनी पुलिस पर है उतनी ही उस असंयमित भीड़ पर भी है.
बुधवार, 8 सितंबर 2010
मुझसे एकबार किसी ने कहा था की ममता बनर्जी को राजनीति करनी नहीं आती लेकिन आज पश्चिम बंगाल की जो स्थिति है उसमे नहीं लगता कि कोई सिर्फ इस वजह से कोम्युनिस्टों को चुनेगा.बंगाल प्राकृतिक रूप से देश का एक सुविधा-संपन्न और काफी समृद्ध राज्य है लेकिन आज लम्बे समय के कुशासन का ही फल है की कोल्कता देश के दूसरे बड़े शहरों से विकास के मामले में पीछे है.
मंगलवार, 7 सितंबर 2010
रविवार, 5 सितंबर 2010
साहित्य पर मुक्तिबोध
भारतीय मन की अपनी कुछ विशेषताएं हैं. वह साहित्य को अपने आत्मीय परमप्रिय मित्र की भांति देखना चाहता है,जो रास्ते चलते उससे बात कर सके , सलाह दे सके, कांट-छांट कर सके, प्रेरित कर सके,पीठ सहला सके और मार्गदर्शन कर सके. भारतीय साहित्य में उन लोगों की वाणी को ही प्रधानता मिली है,जिन्होंने अध्यात्मिक असंतोषों और अत्रिप्तियों को दूर करने की दिशा में विवेक्वेदना स्थिति में ग्रस्त होकर काम किया है.
बुधवार, 1 सितंबर 2010
हमारी शर्म
इरशाद अहमद पररय कि मौत एक लम्बी श्रृंखला की वह दर्दनाक कड़ी है जिसके आगे हम शर्मशार हैं.हमने लम्बे संघर्ष के बाद आजादी तो हासील कर ली और तरक्की भी खूब की ,पर हम इतने लाचार हैं कि अपने बच्चों को जरूरी सुविधा और सुरक्षा भी नहीं दे पाते .
सदस्यता लें
संदेश (Atom)