माँ बरसाती नदी है
रिमझिम बूँदों की सुंदरता न हो
पर जीवन को भरे-पूरे रूप में समो लेने
की शक्ति है वह
हर आने वाली बारिश में
भर जाती है पूरी-की-पूरी
और बीतते मौसम के साथ
जब उतर जाता है समूचा पानी
उसकी सोंधी आँखों में कौंध जाता है
किसी बिखरते हुए बादल का वह दृश्य
जो उसकी मिट्टी की तहों के नीचे कहीं दूर बसा है ।
हर बार की टोक जो झंुझला जाती है मन को
पर जानती हूँ मैं
वह जीना चाहती है मुझमें भरपूर, एक-एक पल में
मरना चाहती है मेरे साथ
क्योंकि बरसाती नदी है वह
और जानती है कि हर बीतता समय
उसे ख़ाली नहीं करता
तभी तो घोर एकाकीपन में भी
वह बचाये रखती है पानी की स्मृति को
अपनी देह पर ।
- सुधा🌺
एक अच्छी कविता...
जवाब देंहटाएंएक अच्छी कविता...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वसंत
जवाब देंहटाएं