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मंगलवार, 26 जुलाई 2011

आधुनिक शेखर

  " विद्रोही बनते नहीं, उत्पन्न होते हैं.विद्रोह्बुद्धि परिस्थियों से संघर्ष की सामर्थ्य, जीवन की क्रियाओं से, परिस्थितियों के घात-प्रतिघात से नहीं निर्मित होती. वह आत्मा का कृत्रिम परिवेष्टन नहीं है, उसका अभिन्नतम अंग है. मैं नहीं मानता कि दैव कुछ है, क्योंकि हममें कोई विवशता, कोई बाध्यता है तो वह बाहरी नहीं, भीतरी है. यदि बाहरी होती,परकीय होती, तो हम उसे दैव कह सकते, पर वह तो भीतरी है, हमारी अपनी है, उसके पक्के होने के लिए भले ही बाहरी निमित्त हो.  उसे हम व्यक्तिगत नियति - 'Personal destiny' - कह सकते हैं."
   'शेखर : एक जीवनी' उपन्यास की शुरुआत अज्ञेय 'मैं' शैली में करते हैं परन्तु कथा के प्रवाह के साथ इस 'मैं' का तृतीय पुरुष  में

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