पृष्ठ

यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 7 अगस्त 2011

aisi hi thi barsaat

कभी शब्द और अर्थ पास होकर भी किसी अनजाने क्षितिज 
की ओर खुलने लगते हैं ...क्या है ये ! 
इस इंद्रजाल की सोंधी सी महक में 
हलके बहुत थोड़े से भींगे पत्तों की छुअन 
डाल से अभी-अभी टपके फूल की लजाई मुस्कान
और रात के अन्धकार में डूबते अंतिम तारे 
की अटूट निष्ठा 
ये सब और बहुत और भी कुछ हमसे लिपटता जाता है...


2 टिप्‍पणियां: