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बुधवार, 18 अप्रैल 2012

शहर

सोया हुआ शहर 
आँखों में 
उतरा आये ख्वाब की तरह होता है.

कुछ रातरानी के फूल 
अनगिन दीयों की टिमटिमाती महक में
घुल गए हों जैसे
हल्की सरसराहटों में
बीता हुआ वक़्त आकाश
के झीने चादर को
गहराता चला जाता है

और चांदी की नदी
सपनीली घाटियों में आते-आते ठिठक पड़ती है
                                                                                                                                                       -सुधा 



19 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी कविता और उतना ही अच्छा लगा आपका ब्लॉग...



    कुँवर जी,

    जवाब देंहटाएं
  2. सोये हुए शहर की ख़्वाबों ख्यालों की सपनीली दुनिया से अच्छी तुलना की है आपने ....
    खूबसूरत पक्तियां !

    जवाब देंहटाएं
  3. कल 30/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छी कविता.. पहली पंक्ति में 'उतरा' को 'उतर' कर लें।

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  5. बहुत सुंदर भाव संयोजन से सजी सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर, मनभावन अभिव्यक्ति! और तस्वीर भी लाजवाब...
    मधुशाला पर आने के लिए तथा मूल्यवान टिपण्णी के लिए आभार!

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर.....

    प्यारी कविता..................

    अनु

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  8. कविता में ऐसी कल्पना , कैसे सोचा आपने ?

    जवाब देंहटाएं
  9. ,सुन्दर कविता,भव्य चित्र,

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