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शनिवार, 23 सितंबर 2017

बारिशें

छोटी-छोटी बूँदों की उतावली
लड़ियाँ जब दिनों
बरसती रहें
जैसे आसमान के दिल में
कोई बात सुराख कर गयी हो
खुद झर-झर नष्टनीड़
हो हर सूखेपन के खिलाफ
बरस पड़ती बारिशों को देखना
क्यों देखना भर ही नहीं हो सकता बस
ये बेवजह की परेशानियां कितनी बावजह है
क्यों बताऊं
एक चिड़िया जो भोर से
ही नाराज पड़ी है इनसे
चीं-चीं कर पूरी खिड़की पर नाकामयाब
उड़ान की खराशें रख गयी है
उसकी झुंझलायी आँखों की जर्दी पर
प्यार आया है बेवजह!
कंक्रीट की दीवार पर
चलती डिब्बे की तरतीब
अविकल रही इन बेमकसद बातों से
उसे इन चिड़ियों, इन टहनियों और
बरसातों से क्या!
जिंदगी की सरपट दौड़ में ठुनकते
इन दिनों से क्या!
-सुधा.

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