नदी खोई-सी थी
लहर...पानी...फूल...
सबसे अलग
पत्थर की सीढ़ियों से सिर टकराती
हर बार.
दूर कहीं वो जहाज जा रहा था
जहाँ डूबता है सूरज
चुपचाप हर रोज.
सुनो नदी गा रही है
वही गीत जो होठों से फिसल पड़ा था अभी पानी में.
पानी का भी एक रंग होता है.
-सुधा.
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