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शनिवार, 3 मार्च 2012

सफ़ेद पंख

जब कभी तुम अपने सफ़ेद पंखों में
मुझे
लपेट लेती हो
तुम्हारे सादेपन की रंगत
मेरा कुछ ले उड़ती है.
घने गांछों के सिर पर
जहाँ सांझ उगती है
और डूब जाता है
अनमना-सा सूरज
कुछ भी तो नहीं बदलता
फिर जाने क्यों टहनियां झुक जाती हैं
उदास होकर
और
जरा सा रूककर तुम  मुझे छोड़ देती हो 
वहीँ कहीं अनजाने में ही












5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर भावाव्यक्ति बधाई

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  2. बहुत खुबसूरत लगी ये पोस्ट ।
    गांछा ???

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  3. पढ़ कर अच्छा लगा । मुझे कुछ नया लगा । मैने 3-4 बार पढ़ा इसे । बढ़िया है ।

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  4. जी शुक्रिया...आपकी टिप्पणी उत्साहवर्द्धक है.

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