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शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

...और मैं एंटरटेनमेंट हूं

सिल्क, एक ऐसी लड़की की कहानी है जो अस्सी की दशक में पैदा तो हुई लेकिन वह अपने समय से काफी आगे की सोच रखती है. व्यक्ति स्वातंत्रय की उस आदिम भावना को अपने जिस्म के लिफाफे में लपेटे वह लड़की अपने रास्ते खुद चुनती है और सोचती है कि वह अपनी मंजिल भी चुनेगी,ये उसका नितांत निजी चयन होगा. लेकिन पितृसत्तात्मक समाज के ढांचें में उसकी यह बोल्डनेस उसके खिलाफ एक ऐसा हथियार बन जाती है जिससे वह पूरी तरह निचोड़ ली जाती है, और जब तक उसे इस सच्चाई का अहसास होता है वह पूरी तरह टूट चुकी होती है. एक ऐसा समाज जहाँ औरत को देह से अधिक कुछ समझा नहीं जाता वहाँ  ऐसी स्त्री इस त्रासद अंत के लिए अभिशप्त है...द डर्टी पिक्चर वही रियल्टी बयां करती है.


हमने औरत को अपने सुविधा के अनुसार परिभाषित करने की आदत डाल ली है, औरत माँ है, बहन है, प्रेमिका है, बाजार में रखी मनोरंजन की वस्तु है...वह सब कुछ है, बस नहीं है तो औरत!  इन stereotype रूपों  में सिल्क की शख्सियत नहीं बंधती, उसे देखने के लिए जरूरी है कि हम अपने आंखों से रंगीन चश्मों को उतार फेंके.


'फिल्में तीन चीजों से चलती हैं- एंटरटेनमेंट,एंटरटेनमेंट,एंटरटेनमेंट और मैं एंटरटेनमेंट हूं'' कहने वाली औरत को इंडस्ट्री के मर्दों ने  यह कहकर खारिज  कर दिया कि उसके पास जो था वह दिखा चुकी. 

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपने इन दो पैराग्राफ में ख़ूबसूरती और स्पष्ट लहजें में जो बात कह दी मुझे कई पैराग्राफ के बाद भी कहना न आया ..बिलकुल सहमत !

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  2. पूर्ण सहमति..... कम शब्दों में ज्यादा कहा...

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  3. कम शब्दों में इतना अधिक, कमाल है।

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