भारतीय मन की अपनी कुछ विशेषताएं हैं. वह साहित्य को अपने आत्मीय परमप्रिय मित्र की भांति देखना चाहता है,जो रास्ते चलते उससे बात कर सके , सलाह दे सके, कांट-छांट कर सके, प्रेरित कर सके,पीठ सहला सके और मार्गदर्शन कर सके. भारतीय साहित्य में उन लोगों की वाणी को ही प्रधानता मिली है,जिन्होंने अध्यात्मिक असंतोषों और अत्रिप्तियों को दूर करने की दिशा में विवेक्वेदना स्थिति में ग्रस्त होकर काम किया है.
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