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शनिवार, 14 जनवरी 2012

ख़्वाब

पहले ख्वाब केवल तीन तरह के होते थे- बच्चों का ख़्वाब, जवानों का ख़्वाब और बूढों का ख़्वाब. फिर ख्वाबों की इस फ़ेहरिस्त में आजादी के ख़्वाब भी शामिल हो गये. और फिर ख्वाबों की दुनिया में बड़ा घपला हुआ. माता-पिता के ख़्वाब बेटे-बेटियों के ख्वाबों से टकराने लगे. पिताजी बेटे को डॉक्टर बनाना चाहते हैं, और बेटा कम्युनिस्ट पार्टी का होल टाइमर बनकर बैठ जाता है. केवल यही घपला नहीं हुआ. बरसाती कीड़ों कि तरह भांति-भांति के ख़्वाब निकल आए. क्लर्कों के ख़्वाब. मजदूरों के ख़्वाब. मिल मालिकों के ख़्वाब. फिल्म स्टार बनने के ख़्वाब. हिंदी ख़्वाब. उर्दू  ख़्वाब. हिन्दुस्तानी ख़्वाब. पाकिस्तानी ख़्वाब. हिंदू ख़्वाब. मुसलमान ख़्वाब. सारा देश ख़्वाबों की दलदल में फँस गया. बच्चों, नौजवानों और बूढों के ख़्वाब ख़्वाबों की धक्कमपेल में तितर-बितर हो गये. हिंदू बच्चों, हिंदू  बूढ़ों और हिंदू नौजवानों के ख़्वाब मुसलमान बच्चों, मुसलमान बूढ़ों और मुसलमान नौजवानों के ख़्वाबों से अलग हो गये. ख़्वाब बंगाली, पंजाबी और उत्तर प्रदेशी हो गए. 
राजनीति वालों ने केवल यह देखा कि एक दिन हिंदुस्तान से एक टुकड़ा अलग हो गया और उसका नाम पकिस्तान पड़ गया. यदि केवल इतना ही हुआ होता तो घबराने कि कोई बात न होती. परन्तु ख़्वाब उलझ गये और साहित्यकार के हाथ-पाँव काट गये. ख़्वाब देखना व्यक्ति, देश और उम्रों का काम है. परन्तु हमारे देश में आजकल व्यक्ति ख़्वाब नहीं देखता. जागते-जागते देश की आंखें दुखने लगती हैं- रही उम्रें - तो वे ख़्वाब देखना भूल गई हैं.
आखिर कोई किस बूते पर ख़्वाब देखे!
परन्तु क्राइसिस यह है कि किसी को इस क्राइसिस का पता ही नहीं है क्योंकि अपने ख़याल में सब कोई-न-कोई ख़्वाब देख रहे हैं.


                                               (राही मासूम रज़ा के 'टोपी शुक्ला' से साभार.)

7 टिप्‍पणियां:

  1. सही और सच्ची बात....साझा करने का शुक्रिया|

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  2. ख्वाबों का सटीक एवं विस्तृत विवेचन.
    सराहनीय....
    कृपया इसे भी पढ़े-
    क्या यही गणतंत्र है

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  3. सुधा जी ख्वाब के विविध रूप दिखाए आप ने ..सच है ये ख्वाब उलझाये हुए इस जिन्दगी को न जाने कहाँ कैसे ले के चले जाते है ..लेकिन लोग दिन में ख्वाब न देखें मूर्त रूप में जाएँ तो अच्छा ...सुन्दर
    भ्रमर का दर्द और दर्पण में भी आइये - अपना स्नेह बनाये रखें और समर्थन भी हो सके तो दें /
    भ्रमर ५

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  4. सच में ख्बाबों का दबाब हर दिन बढ़ता ही जा रहा है.
    आपने खूबसूरती से ब्यान किया है ख्बाबों की सच्चाई का.
    खबाब यदि सकारात्मक हों,तभी कल्याण हो सकता है.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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  5. सपनों के इतने रंग, ओढने को अगर मन करे तो... ?

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