जब हम साथ होते हैं
कभी मौसम के बारे में नहीं पूछते
क्या ही बेमानी सी चीज़ मालूम पड़ती है
कि कहें-
देखो
आज धूप खिली है
वह उगती है
और छा जाती है
हम पर
हवा चलती है
और बहका जाती है
बारिश में घुलती मिट्टी की
महक
बहुत जानी-सी है
और
तुम्हारी बूंदों में पल-पल सोंधा हो जाना
मैंने सीखा है
चुपचाप.
सुनो
तुम्हारे छत पर
क्या आज भी हँसता है चाँद
जैसे
कभी हमारे खुले सिरों पर
खुल-खुल बरस पड़ता था
और
मेरी अँजुरी
बन जाती थी हरसिंगार.
कभी मौसम के बारे में नहीं पूछते
क्या ही बेमानी सी चीज़ मालूम पड़ती है
कि कहें-
देखो
आज धूप खिली है
वह उगती है
और छा जाती है
हम पर
हवा चलती है
और बहका जाती है
बारिश में घुलती मिट्टी की
महक
बहुत जानी-सी है
और
तुम्हारी बूंदों में पल-पल सोंधा हो जाना
मैंने सीखा है
चुपचाप.
सुनो
तुम्हारे छत पर
क्या आज भी हँसता है चाँद
जैसे
कभी हमारे खुले सिरों पर
खुल-खुल बरस पड़ता था
और
मेरी अँजुरी
बन जाती थी हरसिंगार.
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जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबधाई........
धन्यवाद.
हटाएंsudha ji prkriti ke sabhi binduon ke sametati hui yah rachana kafi prabhavshali lagi ....abhar ke sath hi badhai.
जवाब देंहटाएंsudha ji behad prakritik rachana lagi badhai ke sath hi abhar
जवाब देंहटाएंधन्यवाद त्रिपाठीजी! आप सबकी आलोचना भी आमंत्रित है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत कविता सुधा बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ |
जवाब देंहटाएंdhanyawaad.
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