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सोमवार, 9 जनवरी 2012

मौसम

जब हम साथ होते हैं
कभी मौसम के बारे में नहीं पूछते 
क्या ही बेमानी सी चीज़  मालूम पड़ती है
कि कहें- 
देखो 
आज धूप खिली है 
वह उगती है 
और छा जाती है
हम पर
हवा चलती है 
और बहका जाती है
बारिश में घुलती मिट्टी की
महक
बहुत जानी-सी है
और
तुम्हारी बूंदों में पल-पल सोंधा हो जाना 
मैंने सीखा है
चुपचाप.


सुनो
तुम्हारे छत पर 
क्या आज भी हँसता है चाँद
जैसे 
कभी हमारे खुले सिरों  पर
खुल-खुल बरस पड़ता था 


और
मेरी अँजुरी
बन जाती थी हरसिंगार.

8 टिप्‍पणियां:

  1. [tweet https://twitter.com/mannuanurag1/status/157832388716670977]

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति।
    बधाई........

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  3. sudha ji prkriti ke sabhi binduon ke sametati hui yah rachana kafi prabhavshali lagi ....abhar ke sath hi badhai.

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  4. धन्यवाद त्रिपाठीजी! आप सबकी आलोचना भी आमंत्रित है.

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  5. बहुत ही खूबसूरत कविता सुधा बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ |

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