सोया हुआ शहर
आँखों में
उतरा आये ख्वाब की तरह होता है.
कुछ रातरानी के फूल
अनगिन दीयों की टिमटिमाती महक में
घुल गए हों जैसे
हल्की सरसराहटों में
बीता हुआ वक़्त आकाश
के झीने चादर को
गहराता चला जाता है
और चांदी की नदी
सपनीली घाटियों में आते-आते ठिठक पड़ती है
बहुत अच्छी कविता और उतना ही अच्छा लगा आपका ब्लॉग...
जवाब देंहटाएंकुँवर जी,
सोये हुए शहर की ख़्वाबों ख्यालों की सपनीली दुनिया से अच्छी तुलना की है आपने ....
जवाब देंहटाएंखूबसूरत पक्तियां !
dhanywaad.
जवाब देंहटाएंकल 30/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
thank you
हटाएंअच्छी कविता.. पहली पंक्ति में 'उतरा' को 'उतर' कर लें।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव संयोजन से सजी सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर, मनभावन अभिव्यक्ति! और तस्वीर भी लाजवाब...
जवाब देंहटाएंमधुशाला पर आने के लिए तथा मूल्यवान टिपण्णी के लिए आभार!
thank you
हटाएंबहुत सुंदर.....
जवाब देंहटाएंप्यारी कविता..................
अनु
धन्यवाद अनु!
हटाएंकविता में ऐसी कल्पना , कैसे सोचा आपने ?
जवाब देंहटाएंsocha na tha
हटाएं,सुन्दर कविता,भव्य चित्र,
जवाब देंहटाएंdhanyawaad ramkumarji.
हटाएंBAHUT KHOOB
जवाब देंहटाएंthank you
हटाएंBAHUT KHOOB
जवाब देंहटाएंaabhar sir apka
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