निदा फाजली की शायरी में बारिश के बाद धुले आकाश में खिलते इन्द्रधनुष की-सी कशिश है.इनके अंदाज़-ए-बयां में जिंदगी के हर रंग ढलें हैं, आज हम जिस कठिन समय में जी रहें हैं...जहाँ इन्सानियत की दुहाई देना बुझदिली समझी जाती है और दूसरों को चोट पहूँचाने को कला.मुंबई में हूआ सिरीयल ब्लास्ट तो उस बर्बरता की एक कड़ी भर है जिसने दुनिया भर में लाखों निर्दोष लोगों की जाने ली है...ऐसे में निदा फाजली की कुछ पंक्तियाँ याद आती हैं जो मैंने बहुत पहले पढ़ीं थी....
गरज-बरस प्यासी धरती पर
फिर पानी दे मौला
चिड़ियों को दाने, बच्चों को
गुडधानी दे मौला
दो और दो का जोड़ हमेशा
चार कहाँ होता है
सोच-समझवालों को थोड़ी
नादानी दे मौला
फिर रौशन कर ज़हर का प्याला
चमका नयी सलीबें
झूठों की दुनिया में सच को
ताबानी* दे मौला
फिर मूरत से बाहर आकार
चारों ओर बिखर जा
फिर मंदिर को कोई 'मीरा'
दीवानी दे मौला
तेरे होते कोई किसी की
जान का दुश्मन क्यों हो
जीनेवालों को मरने की
आसानी दे मौला
* ताबानी- जगमगाहट
बहुत खुबसूरत......फाजली साहब की ये ग़ज़ल शानदार है.......बाँटने के लिए शुक्रिया|
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