सफ़ेद पंख
जब कभी तुम अपने सफ़ेद पंखों में
मुझे
लपेट लेती हो
तुम्हारे सादेपन की रंगत
मेरा कुछ ले उड़ती है.
घने गांछों के सिर पर
जहाँ सांझ उगती है
और डूब जाता है
अनमना-सा सूरज
कुछ भी तो नहीं बदलता
फिर जाने क्यों टहनियां झुक जाती हैं
उदास होकर
और
जरा सा रूककर तुम मुझे छोड़ देती हो
वहीँ कहीं अनजाने में ही
बहुत ही सुंदर भावाव्यक्ति बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत लगी ये पोस्ट ।
जवाब देंहटाएंगांछा ???
भावपूर्ण अभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंपढ़ कर अच्छा लगा । मुझे कुछ नया लगा । मैने 3-4 बार पढ़ा इसे । बढ़िया है ।
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया...आपकी टिप्पणी उत्साहवर्द्धक है.
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