मन है और उसको ओढ़े हुए एक देह
जीवन, धरती,फूल, शब्द
और
विस्तृत मरुप्रांतर की शुष्क हवा
के ऊपर खिला है आकाश.
समुद्र है कहीं दूर उस न देखे झरोखे-सा
नदी की
छूटी हुई धारा की पहुँच से बाहर
आँखों के काजल में डूबती दिशाएं
कुछ चिटक-सा जाता है हर बार.
आह ईश्वर! तुम हो
क्या यहीं कहीं बादलों में इन्द्रधनुष के रंगों-से
very nice......beautiful.
जवाब देंहटाएंbahut gahre bhavon ko shabdon me abhivyakt kiya hai aapne .aabhar
जवाब देंहटाएंARE YOU READY FOR BLOG PAHELI -2
निसर्ग और मानवीय भावनाओं का सुन्दर आमेलन ....बहुत अच्छा !
जवाब देंहटाएंvery very nice sudha ji thanks with congratulation
जवाब देंहटाएंआप सबका आभार..
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